सोमवार व्रत विधि कथा व उद्यापन – Somvar Vrat Vidhi Katha Udyapan

सोमवार व्रत विधि कथा व उद्यापन – Somvar Vrat Vidhi Katha Udyapan

सोमवार व्रत विधि कथा व उद्यापन – Somvar Vrat Vidhi Katha Udyapan

Video 16 सोमवार व्रत विधि उद्यापन
16 सोमवार व्रत विधि उद्यापन

सोलह सोमवार व्रत

दांपत्‍य जीवन की खुशहाली के लिए और मनपसंद जीवनसाथी पाने के लिए किया जाता है। ऐसी मान्‍यता है कि 16 सोमवार के व्रत का आरंभ श्रावण मास से करें तो यह और भी फलदायी होता है। पौराणिक मान्‍यताओं में बताया गया है कि सोलह सोमवार का व्रत रखने का आरंभ सबसे पहले मां पार्वती ने स्‍वयं किया था और उनकी कड़ी तपस्‍या और व्रत के शुभ प्रभाव की वजह से उन्‍हें भगवान शिव पति के रूप में प्राप्‍त हुए थे। सोमवार व्रत को क्वारी कन्याएं मन चाहा वर पाने के लिए और सुहागनें सुखमय दांपत्य जीवन पाने के लिए करती है किसी भी पूजा या व्रत को आरम्भ करने के लिये सर्व प्रथम संकल्प करना चाहिये। व्रत के पहले दिन संकल्प किया जाता है। उसके बाद आप नियमित पूजा और व्रत करें। सबसे पहले हाथ में जल, अक्षत, पान का पत्ता, सुपारी और कुछ सिक्के लेकर संकल्प करें। सभी वस्‍तुएं भगवान शिव की मूर्ति के आगे समर्पित कर दें।

सोमवार व्रत कथा

सोमवार व्रतकथा- अमरपुर नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर में उस व्यापारी का सभी लोग मान-सम्मान करते थे। इतना सबकुछ होने पर भी वह व्यापारी अंतर्मन से बहुत दुखी था क्योंकि उस व्यापारी का कोई पुत्र नहीं था।

दिन-रात उसे एक ही चिंता सताती रहती थी। उसकी मृत्यु के बाद उसके इतने बड़े व्यापार और धन-संपत्ति को कौन संभालेगा। पुत्र पाने की इच्छा से वह व्यापारी प्रति सोमवार भगवान शिव की व्रत-पूजा किया करता था। सायंकाल को व्यापारी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाया करता था।

उस व्यापारी की भक्ति देखकर एक दिन पार्वती ने भगवान शिव से कहा- ‘हे प्राणनाथ, यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। कितने दिनों से यह सोमवार का व्रत और पूजा नियमित कर रहा है। भगवान, आप इस व्यापारी की मनोकामना अवश्य पूर्ण करें।’

भगवान शिव ने मुस्कराते हुए कहा- ‘हे पार्वती! इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है।’ इसके बावजूद पार्वती जी नहीं मानीं। उन्होंने आग्रह करते हुए कहा- ‘नहीं प्राणनाथ! आपको इस व्यापारी की इच्छा पूरी करनी ही पड़ेगी। यह आपका अनन्य भक्त है। प्रति सोमवार आपका विधिवत व्रत रखता है और पूजा-अर्चना के बाद आपको भोग लगाकर एक समय भोजन ग्रहण करता है। आपको इसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान देना ही होगा।’

पार्वती का इतना आग्रह देखकर भगवान शिव ने कहा- ‘तुम्हारे आग्रह पर मैं इस व्यापारी को पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूं। लेकिन इसका पुत्र 16 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा।’ उसी रात भगवान शिव ने स्वप्न में उस व्यापारी को दर्शन देकर उसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की बात भी बताई।

भगवान के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस खुशी को नष्ट कर दिया। व्यापारी पहले की तरह सोमवार का विधिवत व्रत करता रहा। कुछ महीने पश्चात उसके घर अति सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ। पुत्र जन्म से व्यापारी के घर में खुशियां भर गईं। बहुत धूमधाम से पुत्र-जन्म का समारोह मनाया गया।

व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्प आयु के रहस्य का पता था। यह रहस्य घर में किसी को नहीं मालूम था। विद्वान ब्राह्मणों ने उस पुत्र का नाम अमर रखा। अमर अपने ननिहाल में अपने मामा के यहां पर रहने लगा समय बीतता गया और उस बालक की उम्र सोलह वर्ष की जैसे ही पूरी हुई यमराज ने बालक की प्राण ज्योति को निकाल लिया और लेकर चले गए अब तो बालक के मरने का समाचार पूरे नगर में फैल गया माता पिता सगे सम्बन्धी सभी विलाप करने लगे आसपास के लोग भी एकत्र होकर दुःख प्रकट करने लगे।

मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुने। पार्वती जी ने भगवान से कहा- ‘प्राणनाथ! मुझसे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट अवश्य दूर करें।’

भगवान शिव ने पार्वती जी के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर अमर को देखा तो पार्वती जी से बोले- ‘पार्वती! यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है। मैंने इसे 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। इसकी आयु तो पूरी हो गई।’

पार्वती जी ने फिर भगवान शिव से निवेदन किया- ‘हे प्राणनाथ! आप इस लड़के को जीवित करें। नहीं तो इसके माता-पिता पुत्र की मृत्यु के कारण रो-रोकर अपने प्राणों का त्याग कर देंगे। इस लड़के का पिता तो आपका परम भक्त है। वर्षों से सोमवार का व्रत करते हुए आपको भोग लगा रहा है।’

पार्वती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वह जीवित होकर उठ बैठा। शिक्षा समाप्त करके अमर मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां अमर का विवाह हुआ था। उस नगर में भी अमर ने यज्ञ का आयोजन किया। समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा।

राजा ने अमर को तुरंत पहचान लिया। यज्ञ समाप्त होने पर राजा अमर और उसके मामा को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत-सा धन, वस्त्र देकर राजकुमारी के साथ विदा किया।

रास्ते में सुरक्षा के लिए राजा ने बहुत से सैनिकों को भी साथ भेजा। दीपचंद ने नगर में पहुंचते ही एक दूत को घर भेजकर अपने आगमन की सूचना भेजी। अपने बेटे अमर के जीवित वापस लौटने की सूचना से व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ।

व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ स्वयं को एक कमरे में बंद कर रखा था। भूखे-प्यासे रहकर व्यापारी और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे।

व्यापारी अपनी पत्नी और मित्रों के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा। अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी चंद्रिका को देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- ‘हे श्रेष्ठी! मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है।’ व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ।

सोमवार का व्रत करने से व्यापारी के घर में खुशियां लौट आईं। शास्त्रों में लिखा है कि जो स्त्री-पुरुष सोमवार का विधिवत व्रत करते और व्रतकथा सुनते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

व्रत का फल

* जीवन धन-धान्य से भर जाता है।

* सभी अनिष्टों का हरण कर भगवान शिव अपने भक्तों के कष्टों को दूर करते हैं।

* सोमवार व्रत नियमित रूप से करने पर भगवान शिव तथा देवी पार्वती की अनुकंपा बनी रहती है।

कन्याओं को मनचाहा वर प्राप्त होता है

विधि

किसी भी पूजा या व्रत को आरम्भ करने के लिये सर्व प्रथम संकल्प करना चाहिये। व्रत के पहले दिन संकल्प किया जाता है। उसके बाद आप नियमित पूजा और व्रत करें।

  • हाथ में अक्षत तथा फूल लेकर दोनों हाथ जोड़ लें और भगवान शिव का आह्वान करें।
  • हाथ में लिये हुए फूल और अक्षत शिव भगवान को समर्पित करें।
  • सबसे पहले भगवान शिव पर जल चढ़ाएं।
  • जल के बाद सफेद वस्त्र अर्पित करें।
  • सफेद चंदन से भगवान को तिलक लगाएं एवं तिलक पर अक्षत लगाएं।
  • सफेद पुष्प, धतुरा, बेल-पत्र, भांग एवं पुष्पमाला अर्पित करें।
  • अष्टगंध, धूप अर्पित कर, दीप दिखायें।
  • भगवान को भोग के रूप में ऋतु फल या बेल और नैवेद्य अर्पित करें
  • जब आपका संकल्प मनोरथ पूर्ण हो जाये तब अपने व्रत का उद्यापन किया जाता है उद्धापन का अर्थ है विशेष धन्यवाद प्रार्थना
  • किसी कुशल ब्राह्मण के द्वारा पूजन कथा हवन कराये कन्या व ब्राह्मणों को भोजन कराये उन्हें दक्षिणा वस्त्र सफेद वस्तुओ का दान करे जौसे सफेद वस्त्र चांदी इत्यादि कथा पूजन के बाद हवन किया जाता है
  • ऐसे करें सोमवार व्रत का उद्यापन,
  • सोमवार व्रत रखने से पहले आप जितने व्रत करने का संकल्प लेते हैं. उतने ही सोमवार को व्रत करें और जब आपकी मनोकामनाएं पूरी हो जाए तब सोमवार के व्रत का उद्यापन कर दें. उद्यापन पूरे विधि विधान से किया जाना जरूरी है, तो
  • सोमवार का दिन भगवान भोलेनाथ को समर्पित है. इस दिन देवों के देव महादेव की विशेष पूजा करने और व्रत रखने का विधान है. आप अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए 16 सोमवार या मनोकामना पूरी होने तक का सोमवार व्रत रख सकते हैं. सोमवार व्रत रखने से पहले आप जितने व्रत करने का संकल्प लेते हैं. उतने ही सोमवार को व्रत करें और जब आपकी मनोकामनाएं पूरी हो जाए तब सोमवार के व्रत का उद्यापन कर दें. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि किसी भी व्रत का समय पूरा होने के बाद भगवान की जो अंतिम पूजा या व्रत होता है, उस व्रत को ही उद्यापन कहा जाता है. वैसे तो सोमवार का व्रत आप कभी भी उठा सकती हैं, लेकिन सोमवार के उद्यापन के लिए सावन, कार्तिक, वैशाख, ज्येष्ठ या मार्गशीर्ष मास के सभी सोमवार श्रेष्ठ माने जाते हैं. व्रत उद्यापन में शिव-पार्वती जी की पूजा के साथ चंद्रमा की भी पूजा करने का विधान है. उद्यापन पूरे विधि विधान से किया जाना जरूरी है. तो चलिए बताते हैं उद्यापन की विधि और सामग्री.
  • सोमवार व्रत उद्यापन विधि
  • सुबह उठकर नित्य कर्म से निवृत हो स्नान करें.
  • स्नान के बाद हो सके तो सफेद वस्त्र धारण करें.
  • पूजा स्थल को गंगा जल से जरूर शुद्ध करें.
  • पूजा स्थल पर केले के चार खम्बे के द्वारा चौकोर मण्डप बना लें.
  • चारों ओर से फूल और बंदनवार (आम के पत्तों का) से सजायें.
  • पूर्व की ओर मुख करके आसन पर बैठ जायें और साथ में पूजा सामग्री भी रख लें.
  • आटे या हल्दी की रंगोली डालें और उसके ऊपर चौकी या लकड़ी के पटरे को मंडप के बीच में रखें.
  • इसके बाद चौकी पर साफ और कोरा सफेद वस्त्र बिछायें.
  • उस पर शिव-पार्वती जी की प्रतिमा या फिर फोटो को स्थापित करें.
  • चौकी पर किसी पात्र में रखकर चंद्रमा को भी स्थापित करें.
  • सबसे पहले अपने आप को शुद्ध करने के लिये पवित्रीकरण जरूर करें.

This post was last modified on November 21, 2024 7:46 pm