हिंदू धर्म ग्रंथों में भगवान नारायण के पार्षदों का उल्लेख भी आता है. इनमें 16 पार्षदों को प्रधान पार्षद बताया गया है. ये पार्षद हमेशा भगवान की भक्ति व सेवा में लगे रहते हैं. भगवान के भक्तों पर भी कृपा कर उनके कष्ट दूर करते हैं. पापी अजामिल की कथा में नारायण का नाम पुकारने पर भी इन्हीं पार्षदों ने उसे यमराज के बंधन से मुक्त करवाया था, पर बहुत कम लोग ही ये जानते हैं कि ये 16 पार्षद आखिर हैं कौन? ऐसे में आज हम आपको इन पार्षदों के बारे में बताने जा रहे हैं.
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भगवान विष्णु के पार्षद व उनके कार्य पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार, पुराणों में भगवान नारायण के 16 प्रमुख पार्षद बताए गए हैं. ये पार्षद जय, विजय, विष्वक्सेन, प्रबल, बल, नन्द, सुनन्द, सुभद्र, भद्र, चण्ड, प्रचण्ड, कुमुद, कुमुदाक्ष, शील, सुशील और सुषेण हैं. भक्तमाल ग्रंथ के अनुसार, इनमें प्रधान पार्षद विष्वक्सेन के अलावा जय, विजय, प्रबल और बल भक्तों का मंगल करने वाले हैं.
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नन्द, सुनन्द, सुभद्र और भद्र भव रोगों को हरने वाले हैं. चण्ड, प्रचण्ड, कुमुद और कुमुदाक्ष विनीत भाव से कृपा करने वाले और शील, सुशील व सुषेण भावुक भक्तों का पालन करते हैं.
तीन जन्म में राक्षस बने दो पार्षद पंडित जोशी ने बताया कि 16 पार्षदों में जय व विजय पुराणों के प्रमुख पात्रों में शामिल रहे हैं. अपनी लीला के लिए भगवान नारायण ने इन दोनों पार्षदों को ही सनकादिकों से तीन जन्म तक राक्षस होने का श्राप दिलवाया था. जिसके चलते पहले जन्म में वे हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष, दूसरे जन्म में रावण व कुंभकर्ण तथा तीसरे जन्म में शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्म लेकर भगवान नारायण के नृसिंह, वराह, राम व श्रीकृष्ण अवतार के हाथों मारे गए. पर श्राप को भी उन्होंने खुशी से स्वीकार किया.
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उन्होंने कहा कि यदि उन्हें सेवा का सुख त्यागकर भगवान की इच्छा के लिए उनसे शत्रु भाव भी रखना पड़े तो स्वीकार है. इस तरह भगवान के सभी पार्षद हर समय भगवान नारायण की सेवा, लीला व कार्यों में भागीदार बने रहते हैं.
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